August 29, 2011

इस आन्दोलन ने जगाया हर हिन्दुस्तानी के अंदर का हीरो (आन्दोलन की सफलताये ) - - - - mangopeople

   

                                                                    मुझे लगता है की इस आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता ये है की अब तंत्र को ये बात कुछ हद तक या कह ले मजबूरी में ही ये बात समझ मे आ गई है की जनतंत्र में जन बड़ा है तंत्र नहीं, ये सारा का सारा तंत्र जन, जनता, जनार्दन के लिए है ना की जनता इस तंत्र को चलने के लिए है | तंत्र का निर्माण ही इसी लिए किया गया था की जनता को सहूलियत हो उसका काम व्यवस्थित हो किन्तु धीरे  धीरे तंत्र बड़ा होता गया और जनता छोटी, इस आन्दोलन ने किसी भी व्यवस्था को ना तो पलटा है और ना ही कुछ नया किया है उसने तो बस सारी व्यवस्था और चीजो को फिर से सीधा करने का काम किया है जो उलटी हो गई थी | उम्मीद है अब जनता फिर से एक लंबी नीद पर नहीं जाएगी और समय समय पर तंत्र को ये याद दिलाती रहेगी की वो हमारे लिए है ना की हम उसके लिए और तंत्र जनता के लिए कुछ नहीं करेगा तो फिर वहा पर बैठे लोगों को हटा दिया जायेगा या फिर उन्हें ऐसे ही झकझोर कर याद दिलाया जायेगा |                

                                                     दूसरी सफलता इस बात की है की लोगों को ये लगने लगा था की आज के समय में अहिंसा से बात नहीं बनेगी | अब समय, लोग खास कर युवा इतने बदल गये है इतने  उग्र स्वभाव के हो गए है कि अब शायद ही वो अहिंसा की शक्ति को समझे और उसके माध्यम से अपनी कोई बात कहे | हो सकता है की दो या चार दिन के लिए वो अहिंसा का पाठ याद रखे किन्तु जल्द ही अपना धैर्य खो कर हिंसक हो जाये | किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ तब भी नहीं जब एक बार लगा रहा था की सरकार इस आन्दोलन को कोई महत्व नहीं दे रही है और अहिंसा से किया जा रहा आन्दोलन उसको समझ नहीं आ रहा है | लेकिन शायद हम सभी युवाओ को और खुद को भी गलत आंक रहे थे और उन्होंने हम सभी को गलत साबित कर दिया ना केवल अहिंसक आन्दोलन पर डटे रहे बल्कि आन्दोलन के इतने दिन तक खीचने के बाद भी अपना धैर्य बनाये रखा और मैदान छोड़ कर भागने के बजाये मैदान में डटे रहे |
                  
                                              आम आदमी में इस आन्दोलन को लेकर एक गजब का आत्मविश्वास जगा है , एक समय था जब लगभग हर आम आदमी एक निराशावादी सोच में जकड कर बस यही कहता रहता था की देश का कुछ नहीं हो सकता, हम कभी भी सरकार से कुछ नहीं करा सकते है , सरकारे अपनी मनमानी करती रहेंगी हम उसका कुछ नहीं कर सकते, हम इस व्यवस्था को कभी नहीं बदल सकते है | किन्तु इस आन्दोलन ने दिखाया की यदि आम आदमी करना चाहे तो जरुर बहुत कुछ कर सकता है |  एक एक आम आदमी का शायद  कोई अस्तित्व ना हो सरकार के लिए किन्तु जब यही आम आदमी एक एक कर लाखो में बदल जाते है और एक सुर में अपनी बात करते है तो सरकारों को ना केवल सुनाई देता है, उसे मजबूर हो कर ही सही काम तो करना ही पड़ता है | अब उम्मीद है की आम आदमी अपनी सोच बदलेगा निराशावादी होने की जगह आशावादी बनेगा अन्ना ने तो कहा है की ६५% भ्रष्टाचार कम होगा पर आम आदमी के लिए तो इतना भी कम नहीं है कि कम से कम कुछ तो कम होगा चाहे चौथाई भाग ही सही कुछ नहीं से कुछ तो भला ही है | बाकि कहने वाले  लोग कहते रहे की लोकपाल से पुरा भ्रष्टाचार बंद नहीं होगा, आम आदमी के लिए तो थोड़ी राहत भी बहुत है, हम तो डूबते को भी तिनके का सहारा देने की बात करते है यहाँ तो सहारा तिनके से काफी बड़ा है |
                                 

                                                                    हम सभी कभी ना कभी एक कहानी सुन चके है या अपने बच्चो को कभी सुनाई होगी  की कैसे यदि पांचो उंगलिया मिल जाये तो मुठ्ठी बन जाती है और फिर हाथ में ज्यादा ताकत आ जाती है इसे कहते है एकता की शक्ति | पर हम में से ज्यादातर इस कहानी को या तो भूल चुके थे या ये कहे की स्वार्थ पूर्ण राजनीति ने हमें भूलने पर मजबूर कर दिया था | हम बटे थे धर्म को लेकर जातियों को लेकर अपने अपने क्षेत्रवाद भाषावाद को लेकर या राजनीतिक वादों को लेकर किन्तु इस आन्दोलन ने उसे कुछ हद तक ( अफसोस से कहना पड़ रहा है की बस कुछ हद तक, कुछ नेताओ की अपनी निजी नेतागिरी के चक्कर में कुछ अति बुद्धिजीवी टाईप के लोगों के कारण जो धर्म और जाति और वाद को इस आन्दोलन से जोड़ कर अपनी राजनीतिक सोच को पोश रहे थे ) उसे आम आदमी के दिमाग से बाहर निकाल दिया और उसे समझने के लिए मजबूर किया की आप चाहे किसी भी धर्म जाति क्षेत्र या वाद के हो भ्रष्टाचार आप सभी को एक ही रूप में देखता है आप सभी को एक ही तरीके से प्रभावित करता है | भले ही किसानो, मजदूरों, दलितों मुस्लिमो से ये कहा जा रहा था की ये आप की लड़ाई नहीं है ये तो खाये पिये ठसक में रह रहे मध्यम वर्ग की लड़ाई है किन्तु ये बात सिर्फ बरगलाने वाली थी जिन किसानो से उनकी जमीने सस्ते में लेकर सरकारे बिल्डरों को करोडो में बेच कर मुनाफा कमा रही थी क्या वो भ्रष्टाचार नहीं है, किसानो को उनकी फसलो का उचित मूल्य नही दिया जाता किन्तु विदेशो से ब्लैक लिस्डेड कंपनियों से ऐसा सडा गेहू दुगने दामो पर मगा लिया जाता है जो जानवरों के खाने के लायक भी नहीं है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है , क्या मजदूरो के घर के लिए रखी जमीनों को बेच बड़ी इमारते बनाई जा रहा है क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है क्या मजदूरो को बेरोजगार कर मिले बंद कर वहा बड़े बड़े शापिंग मॉल खड़े करने की नीति भ्रष्टाचार नहीं है , क्या दलितों के नाम पर अल्पसंख्यको के नाम पर हर साल करोडो रूपये की योजनाये बनाई जाती है उसके बाद भी आजदी के ६४ साल के बाद भी उनकी स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं आया क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है इसके आलावा रोजमर्रा के जीवन में हो रहे भ्रष्टाचार से सभी रूबरू होते है  | समाज का कोई भी ऐसा वर्ग नहीं है जो भ्रष्टाचार से प्रभावित नहीं हो रहा है ये लड़ाई सभी की है किन्तु जानबूझ कर इस आन्दोलन को बार बार ये कह कर झुठलाया गया इसे ख़ारिज करने का प्रयास किया गया की ये दलितों के लिए नहीं है ये अल्पसंख्यको के लिए नहीं है ये किसानी के लिए नहीं है तो ये मजदूरों के लिए नहीं है | फिर भी इन सभी वर्गों से लोग निकल कर बाहर आये और अपनी आवाज सभी के साथ बुलंद की और कई नेताओ और तथाकथित बुद्धिजीवी ? वर्ग को समझाया की अब समाज के किसी भी वर्ग को आप ज्यादा दिनों तक बेफकुफ़ बना कर बाट कर नहीं रख सकते है और एकता से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है |
                                  
                                                        उम्मीद है की जो लोग इस आन्दोलन से अभी तक इन लोगों के बहकावे के कारण नहीं जुड़े थे वो आगे इस आन्दोलन से जुड़ेंगे और सक्रिय रूप से जुड़ेंगे क्योकि ये आन्दोलन ख़त्म नहीं हुआ है इसे अभी और बहुत आगे जाना है और हम सभी को अपनी ताकत, एकता धैर्य को यु ही बनाये रखना होगा क्योकि जैसे जैसे हमारी जीत होती जाएगी वैसे वैसे आगे की लड़ाई और भी कठिन और मुश्किल होती जाएगी |

                एक बात जो अभी तक समझ नहीं आई वो ये की इस आन्दोलन के पीछे आखिर हाथ किसका था ???? और उसे क्या क्या फायदा हुआ ??? एक गुट कह रहा था की इसके पीछे आर आर एस और हिंदूवादी संगठनो का हाथ है,  तो लो जी अब बताया जाये की उन्हें क्या फायदा हुआ इससे क्योकि यदि उनका इरादा अपनी राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुँचाना होता तो ये आन्दोलन आज नहीं बल्कि अगस्त २०१३ में हो रहा होता चुनावों से ६ महीने पहले या कम से कम उनकी पार्टी बी जे पी बहुत पहले ही इसका साथ दे रही होती ना की इतने हिल हिलावे के बाद | दूसरे भी थे जो कह रहे थे की इसके पीछे कांग्रेस का हाथ बता रहे थे उनके अनुसार ये राहुल की ताजपोशी के लिए था वो तो हुआ नहीं बस एक मामूली से भाषण के सिवा जिसे कांग्रेसियों के अलावा किसी ने भी तवज्जो नहीं दिया , फिर ये भी लगता है की युवराज को कल का प्रधानमंत्री बनने से हम में से कोई भी नहीं रोक सकता है वो तो एक ना एक दिन हो कर रहेगा क्या राहुल एक जनता द्वारा चुने गये प्रधान मंत्री की जगह किसी को हटा कर थोपे गये प्रधानमंत्री के रूप में पहचाना जाना पसंद करेंगे, मुझे तो नहीं लगता है वैसे इस गुट से जवाब आ गया है की अभी नहीं बाद में पता चलेगा की कांग्रेस की कितनी बड़ी चाल थी :))) ठीक है भईया जब आप को उस चाल का पता चले तो हमको भी जरा खबर कीजियेगा और तीसरा हाथ था अमेरिका का :)))))))) अब क्या कहे वहा तो खुद १८ लाख लोगो की बत्ती गुल हो गई है क्रेडिट रेट घटा दिया गया है ( और ऐसा करने के लिए एक भारतीय की बलि भी ले ले गई ) दूसरी आर्थिक मंदी की आहट से डरे पड़े है , बेरोजगारी बढ़ती जा रही है ओबामा अवतार का खुमार उतर रहा है अब वो अपने देश की अराजकता देखे की हमारे देश में अराजकता फैला कर दक्षिण एशिया को अपने लिए एक और मुसीबत बना ले जहा वो पहले ही चीन और पाकिस्तान से परेशान है |  मतलब की !! कोई है जो बताएगा की आखिर इस आन्दोलन के पीछे कौन सा और किसका हाथ था |
               
                                                                       इस आन्दोलन के पहले कभी सोचा नहीं था की मुझमे भी इस तरह के किसी आन्दोलन में सक्रीय रूप से भागीदारी करने की हिम्मत होगी लेकिन धन्यवाद दूंगी इस आन्दोलन का विरोध करने वालो का खाकर की ब्लॉग जगत के विरोधियो का जिन्होंने मुझमे हिम्मत जगाई की मै कई बार समय निकाल कर धरना स्थल पर गई बल्कि दो बड़ी रैलियों में भी परिवार के साथ गई | वहा का जो माहौल था जो जोश था उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है उसे तो वही समझ सकता है जो वहा गया | मै अपने पति को एक बार धरने पर ले गई थी अपनी इच्छा से उसके बाद दो बार उन्होंने मुझे बताया की हमारे घर दूर रैलिया है और मुझे ले कर गए ये असर था वहा एक बार जाने का |  एक गाना जो ए आर रहमान ने बनाया है हीरो कंपनी के लिए पर मुझे तो लगता है जैसे ये गाना आन्दोलन के लिए ही बनाया गया था जिसे हर आम आदमी गा रहा है | एक बार अपनी आंखे बंद कीजिये और इस गाने को देखिये नहीं बस सुनिये चाहे यहाँ या चाहे अपने टीवी सेट पर |
                                        हम में है हीरो रो रो रो रो रो
                                   हम में है हीरो रो रो रो रो रो                    
                                 दिल से कहो ये
                               हम में है हीरो
                             मिल के कहो ये
                         हम में है हीरो
                  हर हिन्दुस्तानी में एक हीरो है |
            






August 20, 2011

कल को यही संसद आप का धार्मिक विशेषाधिकार ख़त्म कर दे या कश्मीर को आजाद कर दे क्या तब भी आप संसद की सर्वोच्चता की बात करेंगे - - - - - -mangopeople

 देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ हो रहे आन्दोलन को बार बार ये कह कर ख़ारिज कर देता है की वो संसद के खिलाफ है एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में संसद ही सर्वोच्च है |   लोग सभी को संसद की सर्वोच्चता समझा रहे है और इस आन्दोलन को लोकतंत्र विरोधी कहने में भी पीछे नहीं हट रहे है | देश में अराजकता फैलने, विदेश पैसे , विदेशी हाथ के साथ साथ ट्रैफिक की व्यवस्था तक ख़राब होने की बात कर रहे है ( ६४ साल तक देश में अराजकता रही उसकी फिक्र नहीं है उसे हटाने के लिए किये जा रहे आन्दोलन से अराजकता दिख रही है , अमेरिका से समझौते के लिए परमाणु बिल के लिए अमेरिका से पैसे आ रहे थे सांसद ख़रीदे जा रहे थे तो ठीक था  , मंत्रियो को बनाने में भी अमेरिकियों का हाथ की बात सामने आई अब वही गन्दगी इन्हें सब जगह दिख रही है ) | पूरे आन्दोलन में कई तरह की बाते करके लोगों को भटकाने का प्रयास किया जा रहा है जैसे ये संविधान के खिलाफ है और जो संविधान के खिलाफ है वो अम्बेडकर के खिलाफ है और जो अम्बेडकर के खिलाफ है वो दलित के खिलाफ है | दूसरा देश के एक समुदाय विशेष को ये कहा जा रहा है की ये सरकार के खिलाफ है और उसे बदलने के लिए है,  जिसका फायदा विपक्षी "सांप्रदायिक" पार्टी को मिलेगा तो तुम्हारा क्या होगा , दूसरी तरह राष्ट्रवाद का झंडा लिए हिंदूवादी लोग भी  है जिन्हें तकलीफ है की जब फला बाबा ने विरोध  किया तो लोगों पर असर नहीं हुआ सभी ने उसका ऐसा साथ नहीं दिया तो अब हम भी इस आन्दोलन में साथ नहीं देंगे जब हमारी पसंद वाले बाबा जी विरोध करेंगे तो ही साथ देंगे ( ये कैसा राष्ट्रवाद है जो राष्ट्र से ऊपर किसी बाबा को बना रहा है ) यानी इस तरह के कई कारण है जो इस आन्दोलन का विरोध किया जा रहा है | तो उन सभी से मेरे दो सवाल है


पहला सवाल ये है की कल को एक ऐसी पार्टी सरकार बनाती है, संसद में पूर्ण बहुमत ले कर आती है जिसके मेनोफेस्टो में ही ये है की वो सभी के ऊपर समान कानून लागु करेगी किसी भी धर्म को विशेष अधिकार नहीं देगी सभी पर एक ही कानून लागु होगा और उनके धर्म का विशेषाधिकार ख़त्म कर देती है बाकायदा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत संसद में कानून बदल कर,  तो क्या वो तब भी ये कह कर चुप रहेंगे की लोकतंत्र में संसद ही सर्वोच्च होता है और हम सभी को इसे मान लेना चाहिए चुपचाप  और यदि वो इसका विरोध करेंगे तो कैसे   ?


 दूसरा सवाल दूसरे लोगों से यदि कल को सरकार एक समुदाय विशेष का वोट पाने की लालच में कश्मीर को स्वायत्ता और आजादी के नाम पर पाकिस्तान को परोस दे, क्या वो तब भी संसद को सर्वोच्च मान कर चुप रहेंगे या कोई भी उनके पसंद की पार्टी गोली और डंडो के डर से बाहर नहीं आई तो वो उसका विरोध किसी अन्य के साथ नहीं करेंगे और अपनी पसंद के लोगों के आगे आने का इतजार भर करेंगे ?


   मुझे सवाल का जवाब दीजिये या ना दीजिये किन्तु एक बार अपने आप से जरुर पूछियेगा क्या वास्तव में संसद ही लोकतंत्र में सर्वोच्च होती है और वास्तव में क्या राष्ट्रवाद में राष्ट्र से बड़ा कोई हो सकता है राष्ट्र का भला किसी के भी द्वारा हो क्या उस पर ध्यान देना चाहिए |

August 18, 2011

जन लोकपाल बिल और सरकारी लोकपाल बिल कुछ बिंदु जिन पर दोनों में असहमति है - - - - -mangopeople



सरकार का कहना है की उसने अन्ना हजारे की ज्यादातर मांगे मान ली है कुछ मांगे जो मानने लायक नहीं है बस उन्हें नहीं माना है तो यहाँ मै उन कुछ खास मांगो का जिक्र करुँगी और उस पर सरकार के रुख का भी |
१ - अन्ना की तरफ से सबसे बड़ी मांग है की लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाना चाहिए
                       जबकि सरकार प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने को तैयार नहीं है |

            संसद में  अब तक आठ बार लोकपाल बिल विभिन्न रूपों में आ चूका है जिसमे से पांच बार के बिल में प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में रखा गया था | प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पत्रकारों से कहा की उन्हें भी लोकपाल के दायरे में आने से कोई परहेज नहीं है , हाल में ही कांग्रेस की नेता जयंती नटराजन की कमिटी ने भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात की फिर अचानक से इससे परहेज क्यों किया जा रहा है | मतलब ये मांग करके सिविल सोसायटी ने कोई नई बात नहीं कही है ये पहले से ही बिल में मौजूद था जिसे फिर से शामिल करने की मांग की जा रही है |

२- न्यायपालिका को भी लोकपाल के दायरे में आना चाहिए |
         न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चहिए जजों के लिए अलग से कानून बना सकते है |
                                                         सौमित्र सेन जिन पर अभी महाभियोग चल रहा है उन पर २००५ में ही आरोप लगे थे पर मुख्य न्यायाधीश ने उनकी जाँच का आदेश २०१० में दिया जब वो रिटायर हो गए | हाल में ही पंजाब के एक जज को पैसे पहंचाए गए पता चला की किसी और जज को पैसे पहुँचने थे |

३-  संसद में सांसदों के आचरण को भी लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए |
           संसद में सांसदों का आचरण इस दायरे में नहीं आना चाहिए संसद खुद अपने सांसदों के बारे में फैसले लेगा |
                       सांसदों ने पैसे ले कर संसद में प्रश्न किया राज्यसभा चुनावों में और किसी खास मुद्दे पर सांसदों को ख़रीदा बेचा जाता है जाँच में कुछ नहीं निकलता और किसी को संसद कोई खास सजा नहीं देती |
४- कोई भी जाँच ६ महीने से दो साल में पूरी हो जानी चाहिए |
            जाँच के लिए सात साल तक का समय दिया जाना चाहिए |
                                        सात साल में तो जाँच का क्या हाल होगा सभी जानते है ये तो बस जाँच को टरकाने जैसा है |
५- भ्रष्टाचार में पकडे जाने पर कम से कम ५ साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद हो |
                        पकडे जाने पर ६-७ महीने की ही सजा हो ( संभव है की टीवी पर गलत बताया जा रहा हो हजरों करोड़ के घोटाले के लिए इतनी कम सजा का प्रावधान सरकार नहीं कर सकती है आप किसी के पास इस बारे में कोई और जानकारी हो तो दे ) 
                                            कोई हजारो करोड़ का घोटाला करे उसे इतनी कम सजा कैसे दे सकते है |                    
       
६- घोटाले की सारी रकम घोटालेबाजो से वसूली जाये
           रकम वसूली को कोई व्यवस्था नहीं है |
                        राजा ने पौने दो करोड़ लाख का घोटाला किया लगभग तीन हजार करोड़ अपने जेब में डाल लिया मान लीजिये की उन्हें सजा हो गई और वो ५ साल बाद आ कर तीन हजार करोड़ के मालिक हो जायेंगे | जनता के टैक्स के पैसे उनकी जेब में चले जायेंगे | 
७- लोकपाल के दायरे में सभी सरकारी कर्मचारी हो
                        संयुक्त सचिव से नीचे के कर्मचारी लोकपाल के दायरे में नहीं होंगे  |
                                           आम आदमी तो रोज इन बड़े अधिकारियो के चंगुल में नहीं फस्ता है तो आम आदमी जब छीटे अधिकारियो से परेशान होगा तो वो क्या करेगा वही पहले की तरह उसी विभाग के एंटी करप्शन ब्योरो को शिकायत करेगा जहा आरोपी अधिकारी के ही भाई बंधु बैठे है |            
८- लोकपाल को नियुक्त करने की कमेटी में न्यायिक, गैरसरकारी और  वो लोग हो जो लोकपाल दे दायरे से बाहर है 
                       जबकि सरकारी लोकपाल बिल में कमेटी के १० सदस्यों में सत्तासीन पार्टी के सांसदों का बहुमत है |
                                                  जो लोकपाल के दायरे में है वो ही कैसे उसे चुन सकते है क्या आरोपी ही अपने लिए जाँच अधिकारी चुनेगा |
९- सी बी आई का एंटी करप्सन विंग पर लोकपाल का अधिकार हो साथ ही सी वी सी पर भी
                          सरकार सीबी आई को लोकपाल के अधिकार में देने को तैयार नहीं है |
                          सरकार के अधिकार क्षेत्र में रह कर सी बी आई कैसे आज तक काम कर रही है  ये सभी जानते है |
१० लोकपाल और लोकायुक्त दोनों के लिए एक ही कानून बने
                             सरकार का कहना है की लोकायुक्त राज्य के अधिकार में है वो उसमे हस्तक्षेप नहीं कर सकती |
                        जमीन अधिग्रहण की तरह सभी राज्य सरकारे अपने अपने हिसाब से कानून बनाने लगे तो क्या होगा |
११-भ्रष्टाचार का आरोप लगाते ही पद से हटा दिया जाये
                               जाँच होने के बाद दोषी होने पर ही हटाया जाये |
                                यदि आरोपी को उसके पद से हटाय नहीं जायेगा तो वो उसी विभाग या पद पर बैठ कर अपने खिलाफ सबूतों को नष्ट नहीं कर देगा जैसे आदर्श की फाईल एक के बाद एक गायब हो रही है या अपने मातहत लोगों को सूचना देने से रोक नहीं सकता है | ये संभव है की कुछ आरोप गलत लगाये जाये किन्तु जब कोई भी लोकपाल को किसी की शिकायत करेगा तो कुछ ना कुछ दस्तावेज या सबूत के साथ ही करेगा उसे देखा कर तो समझ ही जा सकता है  |
१२- लोकपाल को सजा की सिफारिश करने क अधिकार हो
                                  सरकार के अनुसार उसे केवल निलंबित करने का अधिकार हो |
                                  इस मामले में सरकार से सहमत हूँ एक ही व्यक्ति का जाँच और सजा का धिकार नहीं होना चाहिए | हा यदि सिफारिस कर दे तो भी क्या बुरा है अंत में न्यायालय को ही सजा देना है |
१३- सरकार का कहना है की यदि किसी के आरोप साबित नहीं होते है तो आरोप लगाने वाले को सजा मिलेगी वो भी २ से ५ साल की |
                        जबकि अन्ना की टीम इसका विरोध कर रही है इससे लोग शिकायत करने से डरेंगे बल्कि लोगो का नाम छुपा कर रखना चाहिए और बेनामी शिकायत का भी अधिकार होना चाहिए
                                अब इस प्रावधान को आप क्या कहेंगे आज की तारीख में कितने अधिकारी पैसे लेते रंगे हाथ पकडे जाते है किन्तु बाद में छुट जाते है इअतानी मिली भगत है हर जगह ऐसे में कैसे सारे आरोप एक व्यक्ति साबित कर सकता है वो तो आरोप और सबूत भर दे सकता है | यदि इस तरह सजा का प्रावधान होगा तो कोई ही शिकायत करने ही नहीं आयेगा | आज तो सूचना मागने वाले तक को मार दिया जाता है फिर क्या शिकायत करने वाला सुरक्षित होगा |
१४ - जब लोकपाल ही भ्रष्टाचारी निकले तो को भी उसकी शिकायत मुख्य न्यायाधीस से कर सकता है जो उसको हटाने के लिए अधिकृत होंगे
                                  सरकार का कहना है की ये व्यवस्था ठीक नहीं है कोई भी लोकपाल का शिकायत नहीं कर सकता है |  
                            एक तरफ तो सरकार कहती है की जन लोकपाल बिल का लोकपाल निरंकुश हो जायेगा सुप्रीम पवार बन जायेगा जब उसी के खिलाफ सभी को शिकायत करने की छुट दी जा रही है तो उसे वो भी मंजूर नहीं है |


सूचना    
                                  मेरी पोस्ट टीवी पर बताई जानकारी पर आधारित है यदि किसी तथ्य में कोई गड़बड़ी है तो बता दे या आप के पास कोई जानकारी है तो दे, उसे पोस्ट में शामिल कर लुंगी |

August 17, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में मेरा छोटा योगदान और आप ने कितना दिया - - - - - - - mangopeople

                                                     धार्मिक बातो और कहानियो में मेरी ज्यादा रूचि कभी नहीं रही है किन्तु किसी अच्छे काम में एक छोटा से छोटा योगदान का महत्व समझाती दो कहानिया सुन रखी है एक वो जिसमे एक छोटी सी गिलहरी कैसे राम सेतु बनाते समय उसके पत्थरो पर लगे रेत को अपने बदन में लपेट कर उसे साफ कर रही थी दूसरी कहानी जो इस्लाम धर्म से है जिसमे बताया गया की जब  धर्म युद्ध में आग लगी थी तो एक छोटी चिड़िया अपने चोंच में पानी भर कर वहा डाल उसे बुझाने का प्रयास कर रही थी किसी ने पूछ की क्या तुम्हारे इतने कम पानी से इतनी बड़ी आग बुझ जाएगी तो चिड़िया ने कहा हा पता है की नहीं बुझेगी पर कल को जब इतिहास लिख जायेगा तो लोगों को मेरे इस छोटे योगदान से पता होगा की मै किस तरफ थी  ( कहानी ठीक से याद नहीं है कुछ ऐसा ही ही ) | मतलब ये की आप का योगदान कितना छोटा है ये बात महत्व नहीं रखती है बस आप का कोई ना कोई योगदान होना चाहिए किसी ऐसे अच्छे काम में जिसका आप समर्थन करते है |
                                                         तो भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में मैंने भी अपना छोटा सा योगदान दे दिया मेरे पास बस तीन घंटे थे जब तक बेटी स्कुल में थी तो वही तीन घंटे मैंने सड़क पर आ कर इस मुहीम में अपना समर्थन दे दिया |  मै एक आम सी गृहणी हूं और आम आदमी की तरह डरपोक भी हूं कल जब मै भी घर से भ्रष्टाचार की मुहीम में शामिल होने के लिए अकेले निकली तो थोडा अजीब भी लग रहा था और कुछ होने का डर भी किन्तु वहा जाने के बाद कुछ भी ना अजीब लगा ना डर वहा मेरी जैसी कई महिलाए थी जो अकेले ही वहा आई थी और मेरी तरह ही आम गृहणी थी | तो मेरा योगदान तो कल हो गया और आज और आने वाले कल भी होगा भले तीन घंटो का ही आप कितना समय दे रहे है इस भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए |




  ये है मेघा पाटेकर इनके झोपड़पट्टी के लिए चलाये जा रहे अभियान की कई बातो से मै सहमत नहीं हूं और इनका विरोध करती हूं पर कल इनके साथ थी क्योकि कल हम वहा सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ थे
                    



       ये भी मेरी तरह आम गृहणिया है जो अपने घरो में बच्चो को छोड़ कर आई थी तो कुछ कालेज में पढ़  रहे अपने बच्चो के साथ आई थी    
 
 
                                              

August 15, 2011

यदि आप को लगता है की आप आजाद है तो आप को आजादी के पर्व की शुभकामनाये- - - - - - - - -mangopeople

देश की आजादी के लिए कितनो ने अपने जीवन का बलिदान दिया हम इसकी सही गिनती नहीं कर सकते है उन्होंने बलिदान दिया ताकि देश आजाद हो सके देश की आने वाली पीढ़ी एक आजाद और बेहतर जीवन जी सके | हम में से ज्यादातर लोग उस स्वतंत्रता संग्राम में अपना कोई भी योगदान नहीं दे सके क्योकि हम तब वहा नहीं थे पर हमने उनके बलिदानों से मिली आजादी का खूब उपभोग किया और उसके उपभोग में इतने खो गये की कब हम भ्रष्टाचार के गुलाम हो गये हमें पता ही नहीं चला |  ६० साल से ऊपर हो गये हमें गुलाम होते अब समय आ गया है की हम फिर से एक नई आजादी की लड़ाई शुरू करे इस भ्रष्टाचार के खिलाफ , अभी और इसी समय क्योकि अब हम पहले से ज्यादा जागरुक है अब हमें दो सौ सालो तक सहने का इंतजार नहीं करना है और अभी उठ खड़ा होना है, ताकि हमारे बच्चे और उनका भविष्य बेहतर हो | आज हमारे  पास मौका है देश में चल रहे एक दूसरे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का, स्वतंत्रता भ्रष्टाचार से, फिर क्यों हम इस मौके को हाथ से जाने दे | बाहर आइये और साबित कीजिये की आप है और जिन्दा है और आप भी देश के लिए कुछ कर सकते है | कुछ कीजिये, किसी के समर्थन में नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ, सरकारों तक बात पहुचाइए की अब आप से ये सब बर्दास्त नहीं होगा अब आप भ्रष्टाचार का साथ नहीं दे सकते है | ये लोकतंत्र के खिलाफ नहीं है ये संसद के खिलाफ भी नहीं है ये किसी एक राजनितिक दल के खिलाफ भी नहीं है ये बस और बस भ्रष्टाचार के खिलाफ है चाहे वो कोई भी कर रहा हो चाहे वो सरकार करे, नेता करे, मंत्री करे, नौकरशाह करे, आम जनता करे कोई भी करे सन्देश दीजिये अपने विरोध से की अब हम इसे नहीं सहेंगे और हम बदलाव के लिए तैयार है आज और अभी, अब हम हर पांच साल का इंतजार नहीं करेंगे अब हम खुद को पांच साल तक लुटता देख चुप नहीं रहेंगे कि आप को पांच साल बाद बताएँगे, हम अभी ही इसका विरोध करते है और सभी को चेतावनी देते है की अभी तक जो किया सो किया हम चुप रह आप को बढ़ावा देते रहे पर अब नहीं अब हमने अपनी भूल सुधार ली है अब हम इन चीजो को नहीं सहेंगे |
                 विरोध कीजिये कही भी जहा आप है अपने हाऊसिंग सोसायटी में अपने आफिस में अपने मोहल्लो में आप का जे पी पार्क , जंतर मंतर ,या आजाद पार्क जाने की जरुरत नहीं है आप इसका विरोध कही से भी कीजिये जहा आप है , इमारतों  में भ्रष्टाचार के खिलाफ तख्ती टांग दीजिये सोसायटी के कम्पौंड में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा निकालिए , सरकार तक अपना विरोध पहुंचिए, लोगों को खुद से जोडीये, जो नहीं जानते है उन्हें बताइये मिल का इसका विरोध कीजिये, पर कीजिये | अपने आफिस में या ईमारत के परिसर में मोहल्ले में मार्च निकलने या भ्रष्टाचार के विरोध के लिए तख्ती टांगने के लिए आप को पुलिस या प्रशासन से इजाजत की जरुरत नहीं है , पुलिस आप के घरो में घुस कर डंडे नहीं बरसायेगी ना सरकारे हर व्यक्ति के खिलाफ जाँच बैठाएगी , किन्तु  आप के  छोटे से प्रतीकात्मक विरोध का भी उस पर कुछ ना कुछ असर तो जरुर होगा  इसलिए मौन को डर को ख़त्म कीजिये और मुँह खोलिए विरोध कीजिये बताइये की आप कितने परेशान हो चुके है इस भ्रष्टाचार से और आप पूरी व्यवस्था की चुस्त दुरुस्त करने के लिए व्यवस्था में बदलाव के लिए तैयार है |  
                                 आप को किसी व्यक्ति विशेष का समर्थन नहीं करना है आप को भ्रष्टाचार का विरोध करना है उस तरीके से जो आप चाहे आप को अँधेरा नहीं करना है तो मत कीजिये आप आप मोमबत्तिया जला कर रोशनी करके विरोध कीजिये,  आप मत नाम लीजिये व्यक्ति विशेष का आप कहिये की आप बस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे है किसी व्यक्ति या समूह के लिए नहीं | ये किसी और की नहीं हमारी और आप की लड़ाई है ये हमारे और हमारे बच्चो के लिए लड़ी जा रही लड़ाई है सभी को आगे आ कर अपना योगदान किसी ना किसी रूप में करना चाहिए नहीं करेंगे  तो भविष्य में इस लड़ाई में हारने और जितने दोनों ही स्थिति में आप बाद में सिवाय पछताने के कुछ भी नहीं कर पाएंगे |
                                                                                             आज एक आम आदमी एक आम नागरिक के पास मौका है देश के लिए कुछ करने का जहा फायदा घूम कर उसे ही होना है , तो भूल कर भी इस मौके को ना गवाइए और कुछ करीये | ताकि साठ साल बाद हमारे आने वाली पीढ़ी को इस तरह को कोई लड़ाई नहीं लड़नी पड़े आज से ६० साल बाद आज के दिन वो बड़े फक्र से एक विकसित देश के नागरिक के नाते ऐसे ही किसी आधुनिक तकनीक पर अपनी आजादी का असली जश्न मनाये और केवल शब्दों के लिए नहीं माने और गर्व करे की वो भारतीय है |
                       

यदि आप को लगता है की आप आजाद है तो आप को आजादी के पर्व की     शुभकामनाये  |

August 08, 2011

क्या डरपोक भारतीय मध्यम वर्ग अब अन्ना के साथ आयेगा ? - - - - -mangopeople

                         
                                                         
                                                      16 अगस्त से एक बार फिर अन्ना हजारे लोकपाल बिल को लेकर अनशन पर जाने वाले है किन्तु आज परिस्थितिया वैसी नहीं है जैसी की उनके पहले अनशन के समय थी | तब उन्हें और उनकी टीम को बिल्कुल भी ये अंदाजा नहीं था की उनके आन्दोलन को जनता और मीडिया में इस स्तर तक समर्थन मिलेगा | उन्हें मिला समर्थन उनकी उम्मीदों से परे था और सरकार के भी, इसलिए सरकार भी जल्द ही दबाव में आ गई और फौरी तौर पर इस आन्दोलन से निपटने के लिए बिल बनाने  की कमेटी में सिविल सोसायटी के लोगो को शामिल कर लिया किन्तु उसका अंत कैसा होगा ये सरकार को मालूम था, और अंत में हुआ भी वही सरकार ने लोकपाल बिल को जोकपाल बना कर संसद में रख दिया अब अन्ना हजारे और उनकी टीम इसे उनके और जनता के साथ धोखा बता कर एक बार फिर से इस पर आन्दोलन शुरू करना  चाह रही है और 16 अगस्त से अन्ना हजारे ने फिर से अनशन पर जाने की घोषणा कर दी है |
                      किन्तु अब सवाल ये है कि क्या इस बार भी उन्हें जनता खास कर पढ़े लिखे सुविधाभोगी माध्यम वर्ग से वही समर्थन मिलेगा जो उन्हें पिछली बार मिला था | सवाल उठना लाजमी है क्योकि इस बार जनता से उम्मीदे ज्यादा है और आज की परिस्थिति पहले से काफी अलग है | पिछली बार जनता ने जोश में और बिना किसी परिणाम को सोचे सड़को पर उतर कर एस एम एस कैपेनो सोसल साईटों आदि से इस आन्दोलन को खूब समर्थन दिया था किन्तु इस बार इस माध्यम वर्ग को पता है की सरकार किसी आन्दोलन को कुचलने के लिए क्या कर सकती है और किस हद तक जा सकती है | बाबा रामदेव के आन्दोलन का सरकार ने क्या हाल किया और आज भी बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों का क्या हाल कर रही है  उसी से पता चलता है की सरकारे कैसे काम करती है | अब इन सब को देखते हुए लगता है की क्या इस बार पढ़ा लिखा तबका और युवा इस अन्दोलन से उसी तरह जुड़ेगा जैसे इसके पहले जुड़ा था |
                          ९० के दशक में इस माध्यम वर्ग ने अपने सपूतो को इसी तरह के एक आन्दोलन में जलते हुए और मरते हुए देखा था तभी से इनकी रुहे भी किसी आन्दोलन के नाम पर कांप जाती है | सड़क पर किये जा रहे आन्दोलन से कम से कम आम आदमी तो दूर ही रहता था | एक दशक बाद जा कर उसे होश आया की ये भ्रष्टाचार तो हमारे सर के ऊपर तक चला गया है यदि अब इसके खिलाफ नहीं बोले तो ये हम को ही ले डूबेगा | अन्ना की टीम ने लोगो को अपनी बात कहने अपना आक्रोश सामने लाने का मंच दे दिया और लोगो ने उसका उपयोग भी किया किन्तु सभी ये सब करते रहे क्योकि उन्हें सरकार की तरफ से कोई भय नहीं था क्योकि तब तक सरकार ने इस तरह के आन्दोलन को कुचलने का कोई काम नहीं किया था | सिविल सोसायटी को लोकपाल बिल बनाने की कमिटी में शामिल करने को ही सभी ने अपनी जीत मान ली और आन्दोलन को यही सम्पन्न भी मान लिया | किन्तु जब यही लोगों ने टीवी पर बाबा रामदेव के आन्दोलन का हाल देखा सरकारी ज्यादती देखी तो उनके होश उड़ गये , तब इन्हें समझ आया की सरकार किसी आन्दोलन को कुचलने के लिए किसी हद तक जा सकती है और क्या क्या कर सकती है उसके लिए आम आदमी और उसके मुद्दे उसके सवाल कोई मायने नहीं रखेते है | जब सरकारे अपने पर आती है तो इसी तरह सत्ता की ताकत का दुरुपयोग करती है | अब अन्ना हजारे फिर से आन्दोलन करने जा रहे है और इस बार सरकार ने पहले ही दर्शा दिया है की उसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है सरकार से बाहर सरकारी टट्टू लोगों को डराने के लिए ये भी बता रहे है की हर आन्दोलन का वही हाल होगा जो रामदेव के आन्दोलन का हुआ | अब माध्यम वर्ग को पता है की इस बार पहले वाली बात नहीं है इस बार यदि बाहर निकले तो पुलिसिया ज्यादती का शिकार भी होना होगा और डंडे खाने की नौबत भी आ सकती है |
                                 ऐसा नहीं है की सरकार ने बस युही रामदेव के आन्दोलन को इस तरह कुचल दिया वो चाहती तो बड़े आराम से अन्ना हजारे की तरह बाबा को भी योग शिविर के आड़ में अनशन करने की इजाजत नहीं देती लोगों को वहा आने से ही रोकती और इस आन्दोलन को होने ही नहीं देती | किन्तु उसने ये सब होने दिया क्योकि उसकी मंसा तो एक तीर से दो निशाने लगाने की थी उसने सभी टीवी कैमरो  मीडिया के सामने उन लोगों पर लाठी चार्ज किया लोगों का मारा कम उन्हें घसीटा ज्यादा उसका उद्देश्य लोगों को वहा से भगाने से पहले अच्छे से उनकी इज्जत कैमरों के सामने उतारने की थी | सरकार को अच्छे से पता था की ये सब मीडिया रिकार्ड कर रही है और उसे देश के लाखो लोग टीवी पर देखेंगे और वो चाहती भी यही थी की लोग देखे ओर समझ जाये की सरकार क्या क्या कर सकती है | वो आन्दोलन तो सफलता पूर्वक कुचल दिया गया पर वहा जो किया गया उसका दूसरा निशाना था उन चीजो के देख रहा माध्यम वर्ग जो हमेसा ही अपनी इज्जत को लेकर बड़ा सतर्क रहता है जो आन्दोलन तो कर सकता है पर लाठी नहीं खा सकता सड़क पर घसीटा जाना या पुलिस द्वारा गलिया देना उसे बर्दास्त नहीं होगा वो कभी नहीं बर्दास्त करेगा की उसके घर के युवा या महिलाए या वो खुद इस तरह के आन्दोलन में जाये जहा पर ये सब होने की संभावना है |
                                               सरकार का तीर निशाने पर लगा पहले से ही डरपोक रहा माध्यम वर्ग और भी डर गया और पुरा माध्यम वर्ग सहमा डरा हुआ इधर उधर मुँह छुपा रहा है बहाने तलाश रहा है  अन्ना की टीम से ही सवाल पूछ रहा है की आप इससे ज्यादा और क्या चाहते है, सरकार ने तो काफी कुछ दे दिया, आप लोकपाल के नाम पर एक और सत्ता खड़ी कर रहे है ,आप इतना ईमानदार व्यक्ति लोकपाल के लिए कहा से लायेंगे , आप संसद का अपमान कर रहे है, ये लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, आप सरकार गिराने का प्रयास कर रहे है, आप देश को अस्थिर कर रहे है ,आप खुद को संसद से सर्वोच्च क्यों मान रहे है, देश में संसद ही सर्वोच्च है उसकी बात हम सभी को मान लेनी चाहिए आदि आदि आदि  |   सिविल सोसायटी वालो पर भी सवाल खड़े किया जाना लगा और रामदेव के आन्दोलन  को तो सरकार ने पहले ही सांप्रदायिक घोषित कर उसकी हवा निकाल दी थी |  सरकार ने बड़ी चालाकी से अपने एक कांटे से दूसरे कांटे को निकालने का काम किया | 
                                                                                    बेचारा माध्यम वर्ग भी क्या करे वो शुरू से ही डरपोक रहा है उसे खुद के कामने खाने और इज्जत की दुहाई दे कर चुप रहने और दूसरो को भी चुप रहने की सलाह देने की आदत है और सरकार ने भी उसकी इसी आदत का खूब फायदा उठाया और उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया | अब वो  खुद को दिलासा भी दे रहा है की उसने तो आन्दोलन को सफल बना दिया था और सरकार से अपनी बात भी मनवा ली थी अब वहा गए लोग अपनी बात नहीं मनवा सके तो हम क्या कर सकते है | इस बात को अन्ना हजारे की टीम भी अच्छे से समझ रही है इसलिए पहले कोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई की उसके आन्दोलन में सरकार वो सब ना कर सके जो रामदेव के आन्दोलन में किया ताकि लोगो में कुछ विश्वास पैदा हो लोगो का डर कम हो साथ ही अब जगह जगह जा कर लोगो को फिर से जोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है जो पहले इस तरह नहीं किया गया था | पर दूसरी तरफ सरकार और उनकी टीम भी लोगो को डराने के लिए उन्हें हतोस्साहित करने के लिए रोज नये नये बयान जारी कर रही है कभी ये कहती है की उनके आन्दोलन का भी वही हाल होगा जो रामदेव का हुआ, कभी कहती है की करते रहे आन्दोलन हमें कोई चिंता नहीं है, तो कभी कानून व्यवस्था प्रशासन का नाम लेकर जंतर मंतर पर अनशन की इजाजत ही नहीं दे रही है | किन्तु अन्ना की टीम भी लगी है सरकार से दो दो हाथ करने के लिए |
                                 कोई भी क्रांति बड़ा बदलाव या सरकार से उसकी मर्जी के खिलाफ उससे कोई काम करवाना आसान नहीं होता है और ये काम दो या चार दिन में संभव नहीं है इसके लिए पूरे समाज को उठ कर आगे आना होता है और एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है  और कई बार सरकारी ज्यादती का शिकार भी होना पड़ता है | जब कोई समाज इन सब के लिए तैयार होगा तभी वो किसी बदलाव को क्रांति को ला सकता है , नहीं तो छोटे छोटे आन्दोलन विरोधो को सरकारे कभी तव्वजो नहीं देती है और नहीं किसी खास व्यक्ति समूह की सुनती है ,अन्ना तो गाँधीवादी भर है आज के समय में स्वयम गाँधी जी भी आ कर अकेले सरकार से कुछ कहते तो वो उन्हें भी बरगलाने के सिवा कुछ नहीं करती | अब तो १६ अगस्त के बाद ही पता चलेगा की परम्परागत भारतीय माध्यम वर्ग किसी बदलाव को लाने को तैयार है की नहीं , उसमे क्रांति लाने की ताकत है की नहीं , उसने अपने डरपोक प्रकृति को छोड़ा है की नहीं |