January 26, 2011

आखिर देश है क्या ???- - - - - - - -mangopeople



                                                             हर नागरिक को झंडा फहराने की आजादी मिलने के बाद आम आदमी अब ज्यादा झंडे से जुड़ा दिखता है आज रास्ते से गुजरते समय आधे से ज्यादा लोगों के सिने पर झंडा लगा दिखा और रास्ते में चल रहे लगभग सभी बच्चे के हाथ में छोटे छोटे झंडे इस दिन को बच्चो से भी जोड़ रहे थे इन बच्चो में हमारी बिटिया भी थी हाथ में झंडे को झुलाती चली आ रही थी तो लगा जब उन्हें ये दिलाया है तो उससे जुडी कुछ जिम्मेदारिया भी बताते चले सो उन्हें कहा की कभी भी अपने तिरंगे को जमीन से छूने नहीं देते है और ना ही उसे कभी नीचे करते है उसे हमेसा ऊपर की और रखते है | बिटिया ने कहा की ये करना बैड मैनर्स होता है मम्मी, मैंने जवाब हा में दिया तो उन्होंने तुरंत तिरंगे वाला हाथ ऊपर कर लिया |
                                                हमें याद है की हमारे बचपन में हमें इस तरह तिरंगे को हाथ में लेने की आजादी नहीं थी और ना ही हमें कोई देश के बारे में बताने वाला था देश को लेकर जो विचार बने वो अपनी समझ से बने | जो देखा सुना उसी के आधार पर अपने दिमाग से देश के लिए एक विचार बना लिया | ऐसे ही अपने देश के लिए भी मन में भी बचपन में एक विचार बना की हमारा देश दुनिया में सबसे अलग है सबसे ज्यादा गर्व करने के लायक | जितने अलग अलग तरह के लोग  विभिन्न संस्कृति, परम्परा, खान पान, भाषा बोली के लोग यहाँ मिल जुल कर रहते है वो और किसी भी देश में नहीं होगा | ये विचार यु ही नहीं बना इस के पीछे की वजह थी हमारे " दूरदर्शन " के वो धारावाहिक जिसमे दिखाया जाता था की कैसे एक ही ईमारत में पंजाबी, मद्रासी ( उस समय हम लोगों के लिए हर दक्षिण भारतीय मद्रासी ही होता था ) बंगाली मराठी मुस्लिम ईसाई सब साथ में रहते है और बड़े ही प्यार से मिलजुल कर रहते है हर मुसीबत में एक दूसरे का साथ देते है | क्या करे बच्चे थे उन्हें देख कर लगता था की ये भले ये नकली है पर वास्तव में सब लोग ऐसे ही रहते होंगे | अब बनारस में तो इतने तरीके के लोगों से सामना होता नहीं था ये पता था की हा मुंबई में ये कहानिया बनती है वहा ये सब ऐसे ही मिल कर रहते होंगे |
                                    बचपन में ये भ्रम बना गया और विवाह के बाद मुंबई आने तक ये अपने देश पर अतिरिक्त गर्व की भावना बनी रही | अब भ्रम है तो एक ना एक दिन तो उसे टूटना ही था और मुंबई आते ही वो टूटने लगा | बड़े होने के साथ मुंबई में हो रही राजनीति से तो परिचित होने लगे थे पर ये भरोसा था की ये सब बस राजनीति तक ही सिमित होगा | लेकिन भला हो मुंबई वालो का जो उन्होंने ये वाला भ्रम ज्यादा दिनों तक नहीं बने रहने दिया और ये ये भ्रम जल्द ही  तोड़ दिया की ये सब बस राजनीति है | यहाँ आने पर पता चला की कैसे हमारे देश के अन्दर ही कितने देश पल रहे है सभी का अपना देश है और सभी के दिलो में एक दूसरे के लिए कितना द्वेष नफरत भरा पड़ा है खुद को दूसरो से श्रेष्ठ समझने की नाजीवादी सोच भी यहाँ पल रही है | कोई अपनी विपन्नता के लिए दूसरो को दोष मढ़ा रहा है तो कोई अपनी सम्मपनता का दुश्मन किसी को बता रहा है , कोई किसी को फूटी आँख भी नहीं सुहाता | अपने देश के अन्दर ही लोगों के साथ परायो जैसा व्यवहार किया जा रहा है देश के एक हिस्से के लोगों को दूसरे हिस्से में रहने की आजदी नहीं है उन्हें वहा से भगाया जाता है |  बाजार हर जगह हावी है तो यहाँ भी है बाजार में आते ही सब एक दुसरे से बिल्कुल धंधे से जुड़ जाते है पर धंधा ख़त्म होते ही ये मिल कर काम करने की गांठ भी खुल जाती है |
       ऐसा नहीं है की यहाँ तलवार ले कर एक दूसरे को मारने पर उतारू है लोग यहाँ भी लोग वैसे ही रहते है जैसे देश के दूसरे हिस्से में , सभी पड़ोसी जानने वाले एक दूसरे के यहाँ आते जाते है दोस्ती बनाते है मिलते जुलते है वैसे ही यहाँ भी करते है किन्तु एक दूसरे के लिए मन में एक गांठ बना कर चलते है | यहाँ पर आप से मिलने पर आप के नाम पूछने के बाद दूसरा सवाल ये होता है की तुम्हारा गांव कहा है मतलब आप अपना गांव बताइये ताकि वो जान सके की आप देश के किस हिस्से से आये है और आप के लिए किस तरह की ग्रंथि मन में बनाई जाये | देश के अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग तरह की सोच है और सम्मान देने का स्तर भी है यहाँ सभी को समान रूप से सम्मान नहीं दिया जाता है आप को इज्जत की नजर से देख जाये या घुसपैठिये की नजर से ये आप के जड़ो पर निर्भर होगा | ये सब केवल मुंबई में नहीं हो रहा है ये सब देश के लभग सभी हिस्से में हो रहा है और हर लगभग हर जगह के लोगों की सोच ऐसे ही बनी हुई है या बनती जा रही है | ये सब कुछ केवल राजनीति की देन नहीं है और ना ही केवल उनके द्वारा मन में भरा गया है | असल में ये बिज तो हम सभी के दिल की गहराई में हमेसा से था , उन्होंने तो बस उसे खाद पानी दे कर बड़ा किया है और हमने उन्हें खाद पानी देने की छुट और मौका दोनों दिया है | वैसे भी ये राजनीति आज की नहीं है ये तो देश के आजाद होने के बाद दो देश के रूप में सामने आया फिर देश के अन्दर राज्यों की सीमा खीचने की वजह बना | ऐसा नहीं है कि अब ये सब देखने के बाद देश के लिए सम्मान नहीं रहा या हम देश पर शर्मिंदा है पर हा वह जो बचपन में अतिरिक्त गर्व वाली भावना थी वो चली गई |
                                                       कभी कभी लगता है कि आखिर देश का मतलब लोग क्या लगाते है आखिर देश का मतलब लोग समझते क्या है,  क्या लोगों के लिए देश का मतलब सिर्फ जमीन के एक खास टुकडे से है  |  कभी तो लगता है कि हम केवल जमीन के टुकडे से प्यार करते है और उसे ही देश मानते है यहाँ रह रहे लोगों को हम देश कि गिनती से नहीं रखते है और ये प्यार भी किस जमीन के टुकडे से, उस जमीन के टुकडे से जिसके बारे में हमें बचपन में ही भ्रम बना दिया जाता है कि ये हमारा है उस टुकडे को भी जो कभी हमारा था ही नहीं और ना कभी भविष्य में होगा और उस टुकडे को भी जो कब का हमारे हाथ से जा चूका है और कभी वापस नहीं मिलने वाला है  | बस उसे तो कागजो पर लकीर खीच खीच कर हमारा बना दिया गया है | हमारे देश के जमीन के एक खास टुकडे  से हमें कितना प्यार है , कितना प्यार है हमें उससे हम अपना सब कुछ गवा देंगे उसके लिए मर मिटेंगे पर उस टुकडे को देश से अलग नहीं होने देंगे सच्चा देश प्रेम है हमारा, और वहा के लोग निकाल फेको उन सभी को जो हमसे हमारे जमीन का टुकड़ा छिनना चाहते है निकाल फेको उन सब को जिनकी वजह से वो हमारे हाथ से जा सकता है मार डालो उन सब को चाहे जो भी हो कश्मीरी हो, नक्सली हो, बरगलाये भटके नौजवान हो, उपेक्षा के शिकार दलित आदिवासी हो जो ईसाई बनते जा रहे हो और हम उनकी बढाती संख्या से बड़े परेशान है तो  सभी को मार डालो या देश से निकाल दो  ,  क्यों ? क्योकि हमारे देश की  परिभाषा में लोग नहीं आते है बस जमीन का टुकड़ा आता है और देश प्रेम के नाम पर हम बस उसे ही प्यार करते है |
                               
                       
 चलते चलते
                                              एक बार एक किसान ( किस्से में तो पंजाब का किसान है पर यहाँ सिर्फ किसान ही काफी है ) अपनी गरीबी कर्ज से परेशान हो कर चढ़ गया पानी की टंकी पर धर्मेन्द्र की तरह सुसाइड करने के लिए, अब माँ आई बोली, बेटा नीचे आ जा तू मर गया तो मेरा क्या होगा मेरा बुढ़ापा ख़राब हो जायेगा, बेटा बोला नहीं आऊंगा, फिर पत्नी आई बोली तुम चले गये तो मेरा क्या होगा जीवन कैसे कटेगा, वो बोला नहीं आऊंगा, फिर बच्चे आये बोले पिता जी आप चले गये तो हमारा क्या होगा हमारा तो पुरा जीवन ख़राब हो जायेगा, फिर भी किसान उतरने को तैयार नहीं हुआ बोला नहीं जीना है जीवन से उब गया हु परेशान हो चूका हु | तभी एक पड़ोसी आ कर बोला जल्दी नीचे आ अभी तू मरा नहीं और तेरे जमीन पर तेरे चचेरे भाई हल चला रहे है | किसान आग बबूला हो कर जल्दी जल्दी नीचे आने लगा और गुस्से में बोला माँ लाठी निकाल मै अभी नीचे आ कर एक एक को मजा चखाता हूँ |



                                                               




 









January 20, 2011

बधाई हो आज से देश में नेता , मंत्री पोर्टेबिलिटी की सुविधा सुरु हो गई है - - - - - - - mangopeople

बधाई हो आज से देश में नेता , मंत्री  पोर्टेबिलिटी की सुविधा सुरु हो गई है |
 क्या मंत्री जी अपने विभाग से खुश नहीं है ?
 क्या वो अपने विभाग से परेशान हो गये है ?
 क्या मंत्री जी को अपना विभाग मलाईदार नहीं लग रहा है ?
 क्या मंत्री जी को अपने विभाग से ज्यादा दूसरे विभाग में ज्यादा मलाई दिख रही है ?
 क्या मंत्री जी अब अपने विभाग के सारी मलाई चट कर चुके है और अब वो अपनी भूख मिटाने के लिए दूसरे विभागों की और        नजरे गडाए है ?
 क्या अब मंत्री जी राज्य मंत्री रहते कैबिनेट मंत्री की झूठन खा खा कर उब चुके है अब उन्हें ताजा मलाई खानी है ?
 क्या नेता जी नेतागिरी कर कर थक चुके है अब उन्हें मंत्री बनने की इच्छा जागृत हुई है ?
 क्या मंत्री जी की इच्छा हर विभाग की मलाई खाने की है ?
   तो सभी मंत्रियो और नेताओ के लिए खुशखबरी है देश में अब नेता ,मंत्री पोर्टेबिलिटी सुविधा शुरू हो गई है | नेता वही मंत्री वही बस विभाग बदलिए और काम पर चलिए | अब मंत्री जी को सारी परेशानिया सहते हुए उसी विभाग में पड़े रहने की जरुरत नहीं है वो इस  सुविधा का लाभ उठाये और नेता मंत्री रहते हुए बस अपना विभाग बदल लीजिये |
 बस कॉल कीजिये १० जनपथ पर वहा से एक कोड मिलेगा उसे सीधे मन्नू जी को जा कर दिखाइये और अपनी सारी समस्याओ से निजात पाइये और अपना विभाग बदल डालिए |
पहले ये सुविधा नहीं होने से मंत्री नेताओ को काफी परेशानी होती थी एक बार जब मंत्री पद मिल गया तो मिला गया जो विभाग दिये उसे ही संभालो विभाग बदलने की चेष्टा में आप का मंत्री पद भी जा सकता था और मंत्री जी को परेशानी हो सकती थी किस किस को उन्होंने अपने मंत्री होने का नंबर दे रखा था पुराना कीमती पद चला जायेगा इस डर से मंत्री बेचारे सब सहते हुए उसी विभाग में पड़े रहते थे | पर अब ऐसा नहीं है कुछ भी कीजिये मंत्री पद जाने का कोई डर नहींअब आप को अपने विभागों के ख़राब कमाई से दो चार होने की जरुरत नहीं है तुरंत इस सेवा का लाभ उठाइए और मंत्री रहते अपना विभाग बदलिए |
 अपडेट - - - - -
मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी की शुभारंभ तो प्रधान मंत्री आज करेंगे पर मंत्री पोर्टेबिलिटी सुविधा का शुभारंभ तो उन्होंने कल ही कर दिया और केन्द्रीय मंत्री परिषद के विस्तार के नाम पर बस मंत्रियो के विभाग ऐसे बदल दिया जैसे ताश के पत्तो को फेट दिया हो | जिन्हें मंत्री मंडल से निकाल देना चाहिए था उनके बस विभाग भर बदले | अब इसे मंत्री पोर्टेबिलिटी सुविधा ना कहे तो क्या कहे |

January 15, 2011

गाली पुराण -२ हम विरोध से क्यों बचते है - - - - - - mangopeople

                                                        हम सभी इस बात को ले कर काफी चिंतित और दुखी है कि आज कल समाज में फिल्मो में टीवी पर गालियों का प्रचलन काफी बढ़ गया है हम उसे पसंद नहीं कर रहे है और चाहते है कि ये सब बंद हो क्योकि हम डरे हुए है कि ये हमारे बच्चो को बिगाड़ सकता है किन्तु हम इसके लिए क्या कर रहे है शायद कुछ भी नहीं | अब आप कहेंगे की हम इसके लिए क्या कर सकते है टीवी फिल्मो पर हमारा बस नहीं है वो जो चाहते है दिखाते है ज्यादा से ज्यादा हम उन कार्यक्रमों को नहीं देखते है और समाज में किस किस का इसके लिए मना करे हमारी सुनेगा कौन | लेकिन जहा आप विरोध दर्ज करा सकते है क्या आप वहा इन चीजो के लिए विरोध दर्ज कराते है कि क्यों आप अमर्यादित शब्दों का प्रयोग कर रहे है या क्यों ऐसे मजाक या चुटकुलों को लिख रहे है जिसमे  माँ बहन की गाली दी जा रही है |
                                         कल मैंने अपनी पोस्ट पर यहाँ  ऐसा ही एक निरर्थक चुटकुला दिया था पर किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया की ऐसी गाली से भरे चुटकुले की क्या जरुरत है | मै ये नहीं मान सकती की किसी का उस पर ध्यान नहीं गया होगा | सिर्फ सलिल जी ने संकेत में कहा की उसे पढ़ा कर उन्हें अपनी नजर नीचे करनी पड़ी और संजय जी ने कहा की वो लिख कर मैंने हिम्मत दिखाई है वो ऐसा नहीं कर सकते | दोनों लोगों को धन्यवाद कहूँगी की कुछ तो कहा | मै इसे क्या समझू की हम सब ने वास्तव में अब इन सब चीजो को स्वीकार करके अपने हाथ खड़े कर दिये है अब हमें ये बुरे ही नहीं लगते है या लोगों को लगा की उन्होंने यदि इस विषय में कोई विरोध किया तो मै बुरा मान जाउंगी |
                                                                तब तो सोचने वाली बात है की यदि हम मौका मिलने पर भी इन गालियों का विरोध नहीं करते है तो सिर्फ कहने के लिए कि हमें ये पसंद नहीं है क्या फायदा है और जब हम कुछ सौ ब्लोगों के ब्लॉग जगत को ही इस अमर्यादित शब्दों से साफ सुथरा नहीं रख सकते तो पुरे समाज से कैसे इसे बाहर निकालेंगे | जब हम अपने जानने वाले को ही ऐसे शब्दों, चुटकुलों और बातो से नहीं रोकेंगे तो फिर अपने विरोधियो और दूसरो को कैसे रोकेंगे | आखिर हम सब किसी गलत बात का विरोध करने से क्यों बचते है सिर्फ इस लिए की सामने वाला इस बात का बुरा मान जायेंगा क्या सिर्फ उसके बुरा मानने के डर से हम अपने सामने किसी गलत बात को होते देखते रहेंगे | यदि वास्तव में ये परम्परा है तो गलत है मुझे तो लगता है की गलत बात गलत ही होती है और उसका विरोध करना चाहिए चाहे वो कोई भी करे | जिन्हें हम अपना मानते है जो हमारे परचित है जिनसे हमारी जान पहचान है मुझे तो लगता है की हम उन्हें ज्यादा अच्छे से कह सकते है की आप की ये बात गलत है और वो उसे सकारात्मक रूप में लेंगे जबकि हमारे विरोधी उसे गलत पूर्वाग्रह से ग्रसित मानेगे |
                                                                  कुछ लोगो को ये भी लग सकता है की वो तो एक मामूली सा चुटकुला था इतना बुरा नहीं था की उसका विरोध किया जाये या वो तो कोई गंभीर बात नहीं थी इसलिए उसका क्या विरोध करना | तो ये सोच भी गलत है मजाक में ही सही गाली गाली ही होती है यदि हम किसी भी रूप में उसे स्वीकार करेंगे तो उसे कभी भी अपने बीच से समाज से बाहर नहीं निकाल सकते है | हर विरोध का असर होता है बस हमें किसी गलत बात का विरोध करना भर है पर हम वही नहीं करते है और चाहते है सब अपने आप हो जाये | जब हम सब लेखन के क्षेत्र में रह कर अपनी भाषा को ही साफ सुथरा नहीं रख सकते या उसे साफ सुथरा रखने का प्रयास नहीं कर सकते तो हम समाज को क्या साफ रख पाएंगे भ्रष्टाचार से, अन्याय से |  सभी से निवेदन है बस बाते ना करे कुछ काम भी करे हर गलत बात का विरोध करे असर होगा जरुर होगा |

यदि आप को गाली पर कोई गंभीर लेख पढ़ना है तो  यहाँ    इस लिंक पर जाये जो प्रवीण शाह जी ने कल दिया था | प्रवीण जी धन्यवाद |

January 14, 2011

साली है तो गाली है - गाली पुराण - - - - - - - -mangopeople

                                                       
                                                           रानी मुखर्जी की नई फिल्म का गाना तो सुना होगा " साली रे " जी हा गाने की शुरुआत गाली से होती है | ये कोई पहला गाना नहीं है जिसमे गाली का प्रयोग हुआ है  इसके पहले " बुलशिट बुलशिट" गाना आया था उसके पहले तो "कमीने"  नाम से गाना क्या पूरी फिल्म ही बन गई थी, ये भी नई बात नहीं थी काफी साल पहले शाहरुख इश्क को कमीना कह चुके थे | किसी ज़माने में रहे होंगे ये सब गाली पर आज के समय में ये कोई गाली नहीं रह गई है | भ्रष्टाचार की तरह हमने भी इन शब्दों को एक आम शब्द की तरह बाइज्जत अपना लिया है आत्मसात कर लिया है  |
                                                    इस तरह की गालिया देने वालो से आप कहे की ये गाली है तो वो आप पर हंस कर कहेंगे क्या यार ये गाली नहीं तेरे लिए मेरा प्यार है ( भगवन बचाये ऐसे प्यार भरे शब्दों से ) | जी हा समय के साथ इसी तरह शब्दों के मतलब बदलने लगते है ये केवल भारत में नहीं है | कही पढ़ा था कि अंग्रेजी का शब्द " नाइस " को जब बनाया गया था तो उसका अर्थ बेफकुफ़ होता था जो समय के साथ बदल गया | अब इसे भारत के परिपेक्ष में सोचिये कि हमारे पोता पोती आयेंगे और जब हम उन्हें कोई उपहार देंगे  और वो धन्यवाद के तौर पर कहेंगे " साले दादा जी साली दादी जी थैंक्यू  आप लोग सच में कमीने लोग है हमारा कितना ख्याल रखते है " उफ़ सुन कर कितनी कोफ़्त होगी हम लोगो को, पर तब तक तो हमारे पास इसको सुनने के अलावा कोई चारा ही नहीं होगा |
                                                         ऐसा नहीं है की ये बदलाव एक तरफ़ा है कुछ अच्छे शब्द भी गाली बना दिए गए जैसे कि  "साला" ,"साली" , क्योकि सोचिये तो ये एक रिश्ते का नाम है किन्तु कैसे धीरे धीरे गाली बन गया |  जीजा तो गाली ना हुआ साला साली गाली बन गये  | ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे आज नारी की आजादी और उसके लिए कुछ करने वाली नारियो को "नारीवादी " इस तरह कहा जाता है जैसे की ये कोई गाली हो वैसे ही जैसे  कुछ लोगों के लिए "कम्युनिष्ट" होना गाली हो गई " साला एक नंबर का कम्युनिष्टि है " | सोचिये तो एक समय कम्युनिष्ट से जुड़ना मतलब समाज के सबसे गरीब लाचार लोगों से जुड़ना उनके लिए काम करना समाज में समानता की बात करना था पर आज वो गाली बना गया वही हाल "नारीवाद" शब्द का हो रहा है |
                                                         इसी तरह कुछ और रिश्ते है जो किसी किसी के लिए गाली जैसे होते है | जैसे हमारे यहाँ एक कहावत है " गरीब की लुगाई ( पत्नी) सबकी भौजाई"  मतलब की गरीब की पत्नी को पूरा मोहल्ला, गांव भाभी ही कहता है, चाहे मर्दों की उम्र कुछ भी हो | भाभी का रिश्ता हंसी मजाक का होता है और कुछ लोग इस हंसी मजाक में कोई सीमा का बंधन रखना पसंद नहीं करते है और ऐसे लोग मेहरी से लेकर धोबन को भी भाभी ही कहेंगे  खास कर उन महिलाओ को भाभी कहते है जो इनकी बातो का कोई विरोध ना कर सके और करे तो ये बड़ी आसानी से ये कह कर निकल ले कि अरे वो तो भाभी के नाते मजाक कर रहे थे | जब ऐसे लोग किसी को भाभी कहे तो वो गाली की तरह ही होता है |
                                                             मेरी एक मित्र है उनकी भी एक विशेष गाली है मर्दों के लिए "मर्द कही के" जैसे "कुत्ते कही के" , "कमीने कही के" उसी तरह ये भी है "मर्द कही के" | उनसे पूछा ये कौन सी गाली है तो बोली " ये बताने की जरुरुत तो नहीं है की ज्यादातर मर्दों की महिलाओ को लेकर क्या गन्दी घटिया सोच होती है उस पर पति बन जाये तो  गलतियों बुराइयों का एक पुरा पिटारा बन जाते है अब रोज रोज एक एक बुराई को क्या गिनाना सारी महिलाए जानती है, सो एक शब्द में कह दो "मर्द कही के"  यानि तुम दुनिया के सारी बुराइयों के मिश्रण हो | :))))) सॉलिड वेज गाली है मैंने भी सिख ली है | :))))
                                                                                          कुछ लोग गालिया कितने सम्मान के साथ देते है की सामने वाले को लगता ही नहीं की गाली दी  उसका एक नमूना बताती हु | एक परिचित के घर गई उनके बेटी ने घर में घुसते ही अपने भाई से कहा " D.O.G. साहब आप किससे पूछ कर मेरी घडी लगा कर गए थे " जवाब मिला " मैडम P.I.G. आप भी तो मेरी टी-शर्ट पहनती है " | मुझे लगा की ये बच्चे शायद किसी पोस्ट का नाम ले रहे है जैसे  I.A.S. या  P.C.S अक्सर बच्चे बड़े हो कर जो बनना चाहते है तो बचपन से हम उन्हें उसी नाम से चिढाने के लिए बुलाते है जैसे डाक्टर साहब , वकील साहब उसी तरह ये भी है | मैंने उनकी माता जी की तरफ देखा तो वो बेचारी थोड़ी शर्मिंदा सी बोली अरे बच्चे भी ना कुछ भी बोलते है मुझे भी इनका गाली देना पसंद नहीं है | जब उन्होंने गाली शब्द कहा तब पता चला की अरे बाप रे ये तो कुत्ते सूअर की गाली दी जा रही थी |  हे प्रभु गाली वो भी इतने सम्मान और प्यार के साथ, भाई वाह |
                                                हमारे यहाँ गाली देने की सख्त मनाई थी महिलाए देती नहीं थी बच्चो की हिम्मत नहीं हो सकती थी और घर के  पुरुष( दादा जी को छोड़ कर वो बराबर देते थे)  घर में किसी के सामने कभी गाली नहीं देते थे ( पता तो नहीं पर बाहर जरुर देते होंगे )| यानि गाली देना हम लोगो के लिए एक बड़ा पाप कर्म था लेकिन हमारा बड़ा कजन एक नंबर का शैतान था उसकी शरारते तो वही सब लड़को वाली थी | एक दिन हम लोगो के पास आया हम और मेरी चचेरी बहन उस समय काफी छोटे थे बोला की मै अंग्रजी के तीन शब्द बोलूँगा तुम दोनों में जो उसका अर्थ जल्दी से हिंदी में बताएगा वो जीत जायेगा तीनो का अर्थ जल्दी से जोड़ कर बोलना है चलो बताओ की ग्रीन मैगो मच का क्या मतलब हुआ मैंने फटा फट बता दिया हरा आम जादा अब इन तीनो को मिला का जल्दी बोलिए, गाली बनती है "हरामजादा" | अरे बाप रे इतना बोलना था की उसने चिढाना शुरू कर दिया की गाली दी गाली दी और हम बेचारे चिल्लाये जा रही थी नहीं नहीं हमने गाली नहीं दी वो हँसे जा रहा था और हम दोनों रुआंसी होती जा रहे थे |
                                                                    कुछ गालिया या कहे भारत में ज्यादा प्रचलित गालिया ऐसी है जो हम सभी लोगो को नहीं दे सकते है लेकिन लोग इस बात की परवाह नहीं करके मुक्त कंठ से सभी को एक सुर में वो गाली दे देते है बिना इस बात की परवाह किये की वो उलट कर उन्हें ही लग रही है | कई बार देखा है की माँ बाप अपने ही बच्चे को "हरामजादे"  की गाली दे देते है | मुझे समझ नहीं आता की वो क्या सोच कर ये गाली अपने बच्चे को दे रहे है ये गाली तो उनको पड़ रही है खासकर जब महिलाये ये गाली अपने बच्चे को दे | ये तो बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई बाप अपने बच्चे को उल्लू के पठ्ठे या शैतान की औलाद की गाली दे | मुंबई में मेरी एक रिश्तेदार को आदत थी ये गाली देने की अपने ही बच्चे को, एक दिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने उनसे पूछ ही लिया की आप जो कह रही है क्या आप को उसका मतलब पता है, फिर क्या था "हरामजादे" का अर्थ सन्दर्भ सहित व्याख्या कर दी उनके सामने फिर उनको खीचा की इसके पापा तो आफिस गये है डैडी कहा है ???? बेचारी हे हे हे करने के अलावा कुछ कर नहीं सकी और सही व्याख्या करने के लिए बीस में से दस नंबर मिल गये मतलब की गाली तो उनकी छुटी नहीं ये अच्छी आदते इतनी जल्दी नहीं छूटती है, हा मेरे सामने रहने पर वो अब गाली नहीं देती है |
                                                               उसी तरह जब लोग दिल खोल कर अपने ही भाई बहन को माँ बहन की गाली देते है तो समझ नहीं आता की वो क्या कर रहे है | उन सब को सुन कर तो यही लगता है की असल में लोग गालियों  का मतलब जानते ही नहीं बस उसे निरर्थक बक देते है  क्योकि वो गाली है  | निरर्थक क्यों , क्योकि मैंने देखा है की जिन लोगों को इस तरह की गालियों से सजाया जा रहा है सुनने वालो में ज्यादातर को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है यदि वो कमजोर तबके के है  तो वो उसे चुपचप सुन लेते है नहीं तो बदले में वैसी ही गालियों से जवाबी हमला कर देते है , दोनों बकते है सुनते है और फर्क किसे भी नहीं पड़ता है | असल में जिन्हें गालियों से फर्क पड़ता है उन्हें इतनी बड़ी गाली देने की जरुरत ही नहीं पड़ती है | आप ने उन्हें बेफकुफ़ ,पागल इडियट कह दिया, तो वो या तो उतने में ही सुधर जायेंगे या फिर इतने में ही इतनी हाय तौबा मचाएंगे की इससे आगे की या बड़ी गाली देने की हिम्मत ही आप की नहीं होगी | दूसरे जिन्हें इस तरह की गाली खाने की आदत नहीं होती वो तो गाली देने वालो से पहले ही दूर भाग जाते है या उनके मुहं नहीं लगते है | एक छोटी गाली भी उनको इज्जत उतारू लगती है और अपनी इज्जत अपने हाथ |
                           इन गालियों के सन्दर्भ में एक काम था जो मै कभी नही करना चाहती थी और ना ही कभी किया था वो ब्लॉग जगत ने करवा दिया |  वो काम था गालियों को बाकायदा लिखा हुआ पढ़ना | एक बार लिखा पढ़ा लिया था उसके बाद समझ गई थी की सार्वजनिक टायलेट और दिवालो पर लिखा हुआ ये उच्च कोटि का साहित्य हम जैसो को पढ़ने के लिए नहीं है | इसलिए कही कुछ लिखा देखा तो तुरंत नजर घुमा लिया ताकि गलती से भी पढ़ा ना लू | लेकिन ब्लॉग पर तो हम पढ़ने के लिए ही आये थे तो यहाँ कैसे बचते बाकायदा साफ साफ अच्छे से लिखा, हिंदी के लगभग सभी उच्च कोटि की सभी महान गलिया यहाँ पढ़ा ली | क्या करे ये आशा नहीं थी की यहाँ ये भी पढ़ने को मिलेगा और टिप्पणियों को पढ़ते पढ़ते उन्हें भी पढ़ गये | जैसे गालियों को सुनने के बाद कहा जाता है कि " छि छि कितनी गन्दी गाली बोली घर जा कर कान धोने  पड़ेंगे " वैसे ही यहाँ पढ़ने के बाद तो आँख कान मुहँ तीनो ही धोना पड़ गया | अभी तक कुछ गालिया ऐसी थी जो लोगो को बोलते तो सुना था पर वो ठीक से समझ नहीं आती थी की आखिर बोला क्या, वो यहाँ पर बाकायदा पढ़ने के बाद समझ में आ गई | कुछ लोग तो बाकायदा उन गालियों को सजा कर अब भी अपने पोस्ट पर रखे हुए है जैसे वीरता के कोई तमगे हो |
  
 चलते चलते 
चलते चलते पोस्ट से जुड़ा एक चुटकुला सुने मेरा नहीं है सुना है | बुरा है पर कभी कभी ऐसी बुरी चीजे सुन कर भी हंसी आ ही जाती है |
 एक बार एक अमेरिकी एक जापानी और एक पंजाबी बैठे थे | अमेरिकी ने कहा की हमारे यहाँ बिल्डिंगे इतनी ऊँची है की छत पर चढ़ कर i love u  चिल्लाओ तो वो शब्द घूम कर छ बार वापस आती है इस पर जापानी ने कहा की ये तो कुछ भी नहीं है  हमारे यहाँ तो बिल्डिंगे इतनी ऊँची है की छत से i love u  चिल्लाओ तो वो आठ बार वापस आती है | इस पर पंजाबी ने कहा ये तो कुछ भी नहीं है हमारे यहाँ पंजाब में छत पर जा कर एक बार चिल्लाओ तो शब्द बदल कर दस बार वापस आते है | इस पर अमेरिकी और जापानी ने कहा क्या ये कैसे होता है उस पर पंजाबी बोला बस छत पर जा कर एक बार चिल्लाओ  " माँ की " तो दस छतो से शब्द बदल कर वापस आते है "भेंण की "|

अपडेट - - - -
स्पष्टिकरण --- अभी अभी पढ़ा की ब्लॉग जगत में फिर से किसी पोस्टो पर गाली गलौज की गई है तो मै स्पष्ट कर दू की इस पोस्ट की सम्बन्ध किसी भी पोस्ट से नहीं है और ना ही किसी पोस्ट को पढ़ने के बाद लिखा गया है | अत: पाठक मेरी पोस्ट को किसी और प्रकरण से जोड़ कर ना देखे | मेरी ये पोस्ट पहले से लिखी गई थी प्रकाशित अभी हुई है जिसका जिक्र मैंने शिखा जी के पोस्ट पर यहाँ टिप्पणी के रूप में किया है |
                                                              
 अपडेट - - - - यदि आप को गाली पर कोई गंभीर लेख पढ़ना है तो http://hastakshep.com/?p=१२८४  इस लिंक पर जाये जो प्रवीण शाह जी ने दिया है | प्रवीण जी धन्यवाद | 
                 और कल इस पोस्ट का पार्ट -२ पढ़ना नहीं भूलियेगा |
                                                                          
                                                                               समाप्त
       
       
                                          
         

January 10, 2011

घिसो जब तक घिसता है - - - - - - - mangopeople

                                                     भारत में चीजो को तब तक घिसा जाता है जब तक की उसे घिस सकते है या तब तक जब की चीज की इज्जत ना उतार जाये या अपनी इज्जत ना उतरने लगे, चीजो का एक एक कतरा हम प्रयोग करते है  | सबूत के तौर पर किसी के घर से फेकी जा रही टूथपेस्ट के ट्यूब की हालत आप देख लीजिये उसकी हालत बात देगी की कैसे उसमे से पेस्ट का आखरी कतरा भी निकालने के लिए उस पर क्या क्या जुल्म नहीं किये गये है किस किस तरह से उसे नहीं तोडा मरोड़ा गया है कभी कभी तो उसे काट कर उसमे से काछ कुछ कर पेस्ट निकाल ली जाती है ,और टूथ ब्रस बनाने वाली कंपनिया भले चिल्लाती रहे की अपने ब्रस हर तीन महीने में बदल दे लेकिन कोई भी उनके अपने सामान की बिकी बढ़ाने वाले चोचलो में नहीं पड़ते है हम सब से तो उसे तब तक नहीं बदला जाता, जब तक की वो बिल्कुल घिस कर काम करने के लायक ना रहे |
                                             
                                                    असल में हम भारतीय हर चीज की पूरी कीमत वसूलना जानते है | याद है बचपन में वो हवाई चप्पल उसकी सबसे पहले आगे से बेल्ट टूट जाती थी तुरंत मोची को आठ आना दे कर सिलवा लिया जाता था क्या मजाल की किसी के दिमाग में उसे फेकने का खयाल भी आ जाये | जब मोची की सिलाई भी दो तीन बार करवाने के बाद  बेकार हो जाये तो पिता जी से शिकायत होती थी, नहीं नही उसे फेक कर दूसरी लाने की फरमाइश नहीं होती, कहा जाता की अब तो इसके लिए नया पट्टा ला दीजिये और सात रुपये में नया पट्टा आ जाता और चप्पल फिर से काम के लायक हो जाती पर कई बार ये भी होता था की आगे का छेद ही बड़ा हो जाता था और पट्टा बार बार उसमे से निकल जाता था उसके बाद भी उसे बदलने का ख्याल नहीं आता चलते चलते या खेलते दौड़ते समय बार बार  निकलता था तो तुरंत रुकते चप्पल का हाथ से उठते छेद में फीर से पट्टे का सर घुसाते और काम पर चल जाते | चप्पल तब तक नहीं फेकी जाती थी जब तक की वो पीछे से घिस कर पैर को गन्दा करना ना शुरू कर दे और जूतों में जब तक छेद ना हो जाये | फटे और अंगूठा दिखाने वाले मोजो की तो बात ही मत कीजिये वो तो हर दूसरे के पैर में नजर आ जाता था ( है ) |
              
                                            कपड़ो की भी यही हालत थी रंग फीका हो जाना या घिस जाना कभी भी उसे फेकने या छोड़ने की वजह नहीं बनती थी उसे तब तक घिसा जाता था जब तक की वो फट ना जाये | बाहर कही पहने जाने वाले कपडे ही रंग उड़ने पर छोड़ा जाता था मतलब की उसे बाहर पहन कर जाना छोड़ा जाता था फिर उन कपड़ो को घर पर पहना जाने लगता था तब तक जब तक की वो पूरी तरह फट ना जाये | जी नहीं इसमे उधडी हुई सिलाई नहीं जोड़ी जाती है उसे तो सिल कर फिर से पहनने के लायक (?) बना दिया जाता था | उसी तरह शर्ट की कॉलर घिस गई कोई बात नहीं अभी तो बहुत चलेगा दर्जी को बीस रुपये दे कर कॉलर पलटवा  लिया जाता है अरे अभी तो इस शर्ट को काफी चला सकते है बाकि जगह तो ठीक है | यहाँ तक की थोडा बहुत दाग लगे कपडे भी नहीं फेके जाते थे रखा दो जाड़े के दिनों में स्वेटर के निचे पहनने के काम में आयेंगे | पैंट घुटने से फट गया कोई बात नहीं जी काट कर हाफ पैंट बना दो | माँ की पुरानी साड़ियाँ यदि फटी नहीं है तो बर्तन खरीदने के काम आती थी यदि कही से फट गई है तो कई पुरानी फटी साड़ियों को साट साट कर कथरी ( घर में कपडे से बना पतला गद्दा ) बना दो |
                                                    
                                                     पुराने स्वेटर का रंग पहन पहन कर उतर गया है या स्वेटर चढ़ कर छोटा हो गया है या तो उसे खोल कर दूसरे रंग मिला कर घर पहनने के लिए स्वेटर बना दो या फिर उस चढ़े स्वेटर को छोटे भाई को दे दो | कई बार देखा है की घर का बना कोई स्वेटर दस बीस रंगों का होता है देखते ही समझ आ जाता है की ये किसी के कल्पना या रचनात्मकता के रंग नहीं है सालो से कई स्वेटरो से बचे ऊन का एक बढ़िया प्रयोग भर है, यानी बचा ऊन भी लाख ( काम ) का | हम तो बित्ता दो बित्ता पतंग का नख भी नहीं फेकते थे उससे हाथ से पेंच लड़ने का खेल खेल लेते थे | साबुन घिस का छोटा हो गया कोई बात नहीं अभी तो काफी बड़ा टुकड़ा है अभी तो काफी काम आयेगा उसे टायलेट के बाहर रख दो हाथ धोने के काम आयेगा |
                 
                                                      लिस्ट तो बहुत लम्बी है अब किस किस का नाम ले  | कहने का अर्थ ये है की हम सामान क्या यहाँ तो आदमी खुद को भी तब तक घिसते है जब तक उसे घिसा जा सके | भरोसा नहीं है तो देख लो दादा को, अरे मेरे नहीं देश के दादा सौरभ दादा को ,आई पी एल में खिलाडियों की दो दिन नीलामी हुई पर हमारे गांगुली दादा को एक भी खरीदार नहीं मिला सब जानते है की दादा अब उपयोग के लायक घिसे जा चुके है उनमे अब कुछ नहीं बचा है लेकिन दादा है की मानने को तैयार ही नहीं है | उनको लगता है की थोडा काछ कुछ कर वो अब भी थोडा और घिसे जा सकते है | कहा था ना कि हमरे यहाँ लोग तब तक नहीं मानते जब तक कि उनकी इज्जत ना उतरने लेगे अब बताइये की अब क्या इज्जत बची दादा की, कि कोई खरीदार नहीं मिला | कुछ समझदार थे अनिल कुम्बले जैसे जो पहले ही बात को ताड़ गये और समझदारी दिखा कर पहले ही नाम वापस ले लिया और कह दिया कि वो आई पी एल से जुड़े तो रहेंगे पर खिलाडी के तौर पर नहीं | लेकिन गांगुली ने पिछली बार उनकी और उनकी टीम की फजीयत देख कर भी हकीकत को समझने से इनकार कर दिया और नतीजा सबके सामने है | अब शाहरुख़ ने उन्हें टीम से जुड़ने का प्रस्ताव तो दिया है लेकिन एक खिलाडी के तौर पर नहीं शायद उनकी इज्जत बचाने के लिए या ये कहे की उनका प्रयोग किसी और रूप में करने के लिए | यानी अब वो नहाने के नहीं हाथ धोने के लिए प्रयोग किये जायेंगे |
                                                     
                                                     सौरभ ऐसा करने वाले पहले भारतीय खिलाडी नहीं है भारत में तो इसकी लम्बी लिस्ट है | खिलाडी तब तक खेल से सन्यास नहीं लेते है जब तक कि उन्हें टीम से निकाले बरसों ना हो जाये | अपना अच्छा दौर निकलने के बाद भी वो बार बार टीम के अन्दर बाहर होते रहते है लेकिन सन्यास नहीं लेते है जब तक की चयनकर्ता उन्हें टीम  में लेने से साफ इनकार ना कर दे उसके बाद भी कई खिलाडी लगे रहते है टीम में वापसी की कोशिश में | वही कई विदेशी टीमो में खिलाडी अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन के दौर में ही सन्यास ले लेते है शेनवार्न , गिलक्रिस्ट , मैग्राथ , नतिनी , मुरलीधरन कई नाम है जिन्होंने अपने अच्छे दौर में ही सन्यास ले लिया | इससे हुआ ये की जहा उनका सम्मान सन्यास के बाद भी बना रहा लोग उन्हें याद करते रहे वही नये खिलाडियों को भी खेलने का मौका मिला | लेकिन हमारे यहाँ तो कई सीनियर खिलाडी ये जानते हुए की अब उनके कैरियर में कुछ नहीं बचा वो सन्यास लेने की सोचते भी नहीं सब यही कहते है की अभी तो उनमे काफी खेला बाकि है | ये केवल आज की बात नहीं है भारतीय टीम में ये रोग हमेशा से था | आप में से काफी लोगों ने देखा होगा रवि शास्त्री को छ छक्के उड़ाते,पर जब से मैंने उन्हें देखा है तब से तो यही देखा था की मैदान में आते ही उनकी हुटिंग शुरू हो जाती उनकी वो बोरिंग टुक टुक देख कर तो इतना खीज आता था की हम तो उनके आउट होने की दुआ करने लगते थे और उनके आउट होने पर सब खुशी मनाते थे | वन डे मैच को भी टेस्ट से भी बोरिंग बना देने का हुनर था उनमे | पर क्या मजाल की उन्होंने सन्यास के बारे में सोचा हो |
   
                                                    सौरभ गांगुली अपने समय के सफलतम कप्तानो में एक थे कायदे से तो कप्तानी से हटाये जाने के बाद ही बाइज्जत सन्यास ले लेना चाहिए था जिस तरह उनके ही समय के आस्ट्रेलियन कप्तान स्टीव वॉ ने किया था लेकिन नहीं अपनी जिद में कई बार टीम से अन्दर बाहर हुए और फिर बड़े बेआबरू हो दबाव में सन्यास की घोषणा करनी बड़ी | अनिल कुम्बले और श्रीनाथ जैसे खिलाडियों ने भी समय रहते सन्यास ले लिया था , महान हरफनमौला खिलाडी कपिलदेव का भी प्रदर्शन अंत में ख़राब होने लगा था किन्तु उनके विश्व रिकार्ड के लिए उन्हें टीम में रखा जाता था और उन्होंने भी समझदारी दिखाते हुए रिकार्ड बनते ही सन्यास की घोषणा कर दी |
                     
                                                 कुछ ऐसा ही हाल अब मेरे फेवरेट राहुल द्रविण का है पता है की अब एकदिवसीय टीम में वापसी नामुमकिन है फिर भी वो सन्यास की बात ना करके टीम में वापसी की बात करते है | अच्छा होता की वो एकदिवसी से सन्यास ले कर केवल टेस्ट मैच में खेलते | शुक्र है इस बार आई पी एल में उन्हें खरीदार मिला गया पर ये तो निश्चित है की ये उनकी आखरी डील आई पी एल में है उम्मीद करनी चाहिए की वो गांगुली वाली गलती नहीं दोहराएंगे और समय रहते सही फैसला लेंगे |
          
                                                        गांगुली को लेकर दुःख भी होता है कि आज  भारितीय टीम का जो रूप है वो उन्ही की देन है उन्ही की सोच का नतीजा है एक समय डरी सहमी हर समय रक्षात्मक खेल खेलनेवाली टीम को सौरभ ने ही इतना साहस भरा की वो आगे आ कर फ्रन्ट फुट पर खेलना शुरू किया मैच बचाने के लिए नहीं जितने के लिए खेलने लगी | आज उसी गांगुली का ये हाल अपनी ना समझी के कारण हो रहा है | अब फूकते रहे कोलकाता वाले शाहरुख का पुतला जो होना है वो तो हो चूका अब दादा कितने घिसे जायेंगे |